ऊ जे केरवा जे फरेला# खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए+।
मारबो^ रे सुगवा** धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित* होई ना सहाय ॥
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥
शरीफवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥
सभे फलवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥
*आदित = आदित्य/सूर्य/सूरज
+मेड़राए = मंडराए
^मारबो = मारुंगा/मारुंगी
#फरेला = फलता है/फल
**सुगवा = तोता
भोजपुरी लोकगीत: ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से
भोजपुरी भाषा और संस्कृति में लोकगीतों का एक विशेष स्थान है। यह गीत भी एक भोजपुरी लोकगीत है, जिसमें प्रकृति और भावनाओं का अद्भुत मिश्रण है। इस गीत में तोते (सुगवा) और उसकी प्रेयसी (सुगनी) के माध्यम से वियोग और शोक का वर्णन किया गया है। चलिए इसके विभिन्न हिस्सों को विस्तार से समझते हैं।
गीत का सारांश
यह लोकगीत प्रकृति से जुड़ा हुआ है, जिसमें अलग-अलग फलों पर मंडराते तोते और उनके शिकार की बात की गई है। इसके साथ ही तोते की प्रेयसी का वियोग और उसका दुख भी दर्शाया गया है। सूर्य (आदित्य) भी इस दुख को दूर करने में असमर्थ दिखाई देता है।
गीत के हिस्सों की व्याख्या
पहला श्लोक
ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
इस पंक्ति में “केरवा” (केला) का फलने की बात हो रही है, जिस पर तोता मंडरा रहा है। धनुष से तोते को मारने की बात कही गई है, और उसके मुरझाने का वर्णन किया गया है। यहां तोते का मुरझाना उसकी मृत्यु का प्रतीक है।
दूसरा श्लोक
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
तोते की प्रेयसी “सुगनी” वियोग में रो रही है, और यहां सूर्य देवता भी उसकी मदद नहीं कर पा रहे हैं। इस श्लोक में वियोग और शोक का गहरा भाव व्यक्त किया गया है।
फल और वियोग का संबंध
गीत में केले, नारियल, अमरूद, शरीफा, और सेब जैसे विभिन्न फलों का वर्णन किया गया है, जिन पर तोते मंडराते हैं और फिर उन्हें मारा जाता है। इसके बाद तोते की प्रेयसी के वियोग और उसके शोक को दिखाया गया है। हर श्लोक में एक ही भाव प्रकट होता है, जहां तोता मारा जाता है और उसकी प्रेयसी दुख में डूबी होती है।
प्रतीकात्मक अर्थ
यह गीत प्रतीकात्मक रूप से जीवन के क्षणिक और दुखद पहलुओं को दर्शाता है। तोते का मारा जाना और उसकी प्रेयसी का वियोग दर्शाता है कि जीवन में सुख-दुख का चक्र निरंतर चलता रहता है। तोते और फलों का यह चित्रण भी प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते को दर्शाता है, जहां दोनों एक-दूसरे से गहरे जुड़े होते हैं।
प्रमुख शब्दों के अर्थ:
- आदित: आदित्य या सूर्य देवता।
- मेड़राए: मंडराना, घूमना।
- मारबो: मारना।
- फरेला: फलना, फलदार होना।
- सुगवा: तोता।
निष्कर्ष
भोजपुरी लोकगीतों में इस तरह की भावनात्मक और प्रकृति से जुड़ी कविताओं का एक अलग स्थान है। यह गीत जीवन के अनमोल क्षणों और उनके खोने के बाद के शोक को व्यक्त करता है।